'ओए कुक्की', नसरीन ने कुलविंदर को कॉलेज की सीढ़ियों पर बैठा देख कर पुकारा। 'ओ', कुक्की दोस्तों के बीच से उठकर भागता हुआ आया, 'कुक्की न कहीं'। 'क्यूं', नसरीन ने चिढ़ कर पूछा, 'फिर क्या चाचा नेहरू कहूं'।
'न न', कुक्की ने, इशारतन नसरीन को समझाने की कोशिश करते हुए कहा, 'ओ ते कर दा नाम सी। ऐथे सब कुलविंदर सिंह कैंदे ने'। 'हट', नसरीन ने हंसकर कहा, 'मुझे नहीं याद रहेगा इतना लम्बा नाम। बोलना है बोल नहीं बोलना न बोल'!
'न न बोलांगा क्यूं नई।तू यहीं रहती है अब भी?'
'मतलब?'
'अंकल जी का ट्रांसफ़र नहीं हुआ?'
'न'
'अच्छा, मैं तो हॉस्टल में हूं, हम तो चले गए थे न। सोश्यॉलजी पढ़ रहा हूं। ऐमे में देखियो, बीएचयू जावांगा'। वह बोलता चला जा रहा था। 'पता है मन्ना ने भी एडमिशन लिया था, मगर फिर उसकी शादी हो गई। पहले तो सब बोले आगे पढ़ने देंगे, मगर फिर मना कर दिया'
'तूने किस कोर्स में एडमिशन लिया है?'
'इक्नॉमिक्स'
'बेड़ा गर्क'
'ओ'
'तेरा नई कुड़िए, देश दा'! कुक्की हंसता हुआ वापस दोस्तों के पास भाग गया।
'ओए कुक्की', नसरीन ने फिर पुकारा।
'मोई'!
'कौन है'? अतीक़ा ने पूछा।
'पड़ोसी है'। 'बचपन में जब हम स्कूल जाने के लिए तैयार हो कर घर के बाहिर खड़े होते थे, बस का इंतिज़ार करने, तो यह रोज़ ज़िद कर लेता था कि जो हमारे यहाँ बना है नाश्ते में, वही इसे भी खाना है'।
'अच्छा!'
'हाँ', 'और फिर इसकी बड़ी बहिन मन्ना दीदी, जो सितारा ख़ाला की दोस्त थीं, वो घर आती थीं, कि ला सितारा एक बन दे, या ला, एक कोली हलवा डाल दे, कुक्की मंगता फ़िर जिद कर रहा है'!
'हाहाहाहाह', अतीक़ा हंस दी। 'फिर'?
'फिर मन्ना दीदी की शादी हो गई और मोहल्ले भर की लड़कियों को क्लीचड़ी बटी'। फिर इनके पापा का ट्रांसफ़र हो गया टूंडला।
*********************
'कहाँ हो तुम तीन दिन से? कितना ढूंढा तुम्हे'!
'क्यूं, क्या हो गया?' नसरीन ने पूछा। 'डेट शीट आ गई?'
'अरे नहीं', अतीक़ा ने कहा, 'वो तुम्हारा कुक्की, तुम्हे ढूंढ रहा था'।
'क्यूं',
'क्या पता'! बस कह रहा था आज भी नहीं मिले तो फिर नहीं मिल पाएंगे, वो घर चला जाएगा'।
'क्यूं, एग्ज़ाम्स नहीं देगा?'
'क्या पता'।
********************
'ओ कुक्की'
'मोई'
'एग्ज़ाम्स नहीं दिए तूने?'
'न'
'क्यूं?'
'मन्ना याद है तुझे?' मन्ना दीदी'
'हाँ। क्या हुआ उसे?'
'उसकी शादी हुई थी न।'
'हाँ', नसरीन ने खीजकर कहा, सब याद है, बता भी।
'उसके ससुराल वाले सही नहीं हैं यार, मारते हैं उसे, कहते हैं दहेज नहीं लाई। बता अब जो पापा से बन पड़ा उन्होने किया ही। तुम लोगों ने तो देखा ही था'।
'फिर'?
'फिर, वहीं जाना पड़ा। बार बार जाना पड़ता है। क्या करूं। पापाजी बीमार रहते हैं, जा नहीं सकते।'
'और तेरे एग्ज़ाम्स?'
'चल नेक्स टाइम दे दूंगा, क्या हुआ!'
******************
कुलविंदर को लगा रेलवे प्लेटफ़ार्म की भीड़ में अचानक किसी ने उसकी कलाई थाम ली। उसने ट्रेन में चढ़ते चढ़ते पलटकर देखा। नसरीन अपने मामा के परिवार के साथ खड़ी थी।
'एग्ज़ाम्स नहीं दिये न तूने?'
'न'। कुलविंदर ने मायूसी से कहा। 'यार, नहीं दे पाया'। कहते कहते उसकी आँखें भर आईं। साले हराम##@दों ने जला दिया उसे'। वह रो पड़ा।
'हां, पता चला।'
नसरीन की आँखें भर आईं।
'फिर पापा जी को हार्ट अटैक आ गया। बड़े कमज़ोर हो गए हैं यार। मैं फिर ताऊ जी के साथ दुकान पर बैठने लगा।'
ट्रेन की सीटी प्लेटफ़ॉर्म के शोर को बेधती हुई किसी क्रूर अट्टाहस सी गूंज गई।
'तू कित्थे?'
'मेरा ऐमे में दाख़िला हो गया है। बनारस'।
'किस्मत', कुलविंदर ने रूंधे गले से कहा। 'चल, जुलयाँ। चंगी नाल पढ़ीं'। उसकी भीगी बोझिल आँखें, मुस्करा दीं। वह खिड़की के पास वाली सीट पर जा बैठा।
ट्रेन चल पड़ी।
'कुक्की पा जी', नसरीन ने पुकारा।
वह मुस्करा दिया।
'मोई नहीं कहेगा आज?
'न', उसकी आँखें छलक गईं।
'क्यूं?', उसकी बड़ी बड़ी आँखों से मोटे मोटे आँसू गिरते देख नसरीन भी रो पड़ी।
'वो आज तूने पा जी कह दिया न'
दोनो बिफर कर रो पड़े।
'ज्योंदि रह', उसने कहा।
देखते देखते ट्रेन गोरखपुर स्टेशन से ओझल हो गई।
No comments:
Post a Comment