कॉमरेड, तुम्हारे नाम!
यह अनुवाद,
उस कविता का
जिसे तुम नहीं लिख पाए!
वे शब्द जो आ आ कर,
तुम्हारे क़लम की नोक तक,
बुझ जाते रहे!
उन अफ़सुर्दा शोलों से,
जिन पर हावी रहे
ज़ुल्मतों के साये
रात भार!
वे शब्द जो शाहिद रहे
उस दर्द के
जिसमें घिरा पाया
अक्सर,
तुमने, हमने,
अपने आकुल अस्तित्व को!
बार बार भर आती
तुम्हारी आँखों में तैरते
लाचार वे शब्द,
जो आ आ कर कविता की सतह पर
डूब डूब जाते रहे, नि:श्वास!
थक कर, बार बार!
टूटते विश्वास,
बिखरते परिवार,
और सीवनों से उधड़ते
समाज के ग़म से,
टूटे, बिखरे, उधड़े शब्द,
जो अच्छे वक़्तों में
शायद हो रहते कविता!
वह कविता
जो तुमको लिखनी थी,
हमेशा से ..
.. उसी का यह अनुवाद!
यह अनुवाद,
उस कविता का
जिसे तुम नहीं लिख पाए!
वे शब्द जो आ आ कर,
तुम्हारे क़लम की नोक तक,
बुझ जाते रहे!
उन अफ़सुर्दा शोलों से,
जिन पर हावी रहे
ज़ुल्मतों के साये
रात भार!
वे शब्द जो शाहिद रहे
उस दर्द के
जिसमें घिरा पाया
अक्सर,
तुमने, हमने,
अपने आकुल अस्तित्व को!
बार बार भर आती
तुम्हारी आँखों में तैरते
लाचार वे शब्द,
जो आ आ कर कविता की सतह पर
डूब डूब जाते रहे, नि:श्वास!
थक कर, बार बार!
टूटते विश्वास,
बिखरते परिवार,
और सीवनों से उधड़ते
समाज के ग़म से,
टूटे, बिखरे, उधड़े शब्द,
जो अच्छे वक़्तों में
शायद हो रहते कविता!
वह कविता
जो तुमको लिखनी थी,
हमेशा से ..
.. उसी का यह अनुवाद!
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