Tuesday, 28 August 2018

हस्पताल का कमरा

अक्सर नज़र आता है मुझे
ख़्वाब में,
कमरा उस हस्पताल का!
हौस्पिटल बेड पर लेटी
मेरी माँ
जो यकायक
बदल जाती है
मेरे बच्चे में
उसके नन्हे हाथ में,
धंसा वह क्रूर कैनूला!
अकसर सुनाई देती है
अपने पिता की
भर्राई हुई आवाज़,
उस रुंधे गले से आती, 
जो नहीं जानता!
हस्पताल के रिसैप्शन पर
आते जाते असंख्य लोग
जैसे बस निरन्तर
उमड़े पड़ रहे हैं
इस बेहद तरक़्क़ी याफ़्ता
शहर के सीने से!
हर एक, दूसरे से बेख़बर।

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