Monday 5 November 2018

मकान

मकान तलाशना
मुश्किल होता है
हमेशा ही।
मुश्किल है
इसलिए भी
कि इस शहर की
फ़ितरत में ही नहीं,
बसना, बसे रहना।
यह अभिश्प्त नगर,
जिसे सात बार बसना
और उजड़ना है!

मुश्किल है
इसलिए भी
कि मकान
ईंट गारे के बनते हैं
और घर हौसलों के,
चाहतों के,
और हौसले और चाहतें
समेटे नहीं जा सकते
ईंट-गारे की दीवारों
के संग दायरों में।

बस कर उजड़ना
और उजड़ कर फिर बसना
यूं भी आसान नहीं होता!
लिहाज़ा
आसान नहीं हो सकता
किसी मकान का
घर बनना,
ख़ासकर तब
जब आप तलाश रहे हों
एक मकान
घर बसाने को
जबकि आपके भीतर
निरन्तर
खुल रहे हों सिरे
बिखरे हुए मकानों के।
काश मकान घर बन सकते
महज़ इरादा कर लेने भर से। 

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