Friday, 17 August 2018

तुम्हारी याद का मौसम

तुम्हारी याद का मौसम है और घिरी हूं मैं, इस पागल कर देने वाले शोर में, यह बेमक़सद आपाधापी, ये कभी न ख़त्म होने वाले बेमसरफ़ सवाल जवाब, तवक़्क़ोआत के तक़ाज़े! ये काग़ज़ की दीवारें, और एक दूसरे को बमुश्किल संभाले खड़े, हादसों, वलवलों में घिरे हमारे मकान! कितना ज़रूरी है कि इस ख़राबे से चुराये जाएं चार लम्हे फ़ुरस्त के, तुम्हारी याद के, मगर आह कितना मुश्किल! ज़िन्दगी रस्म अदायगी और बीता जा रहा है यह हसीन मौसम तुम्हारी याद का!

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