Tuesday, 31 December 2019

आओ!

वे हंसते हैं,
जब यह कहा जाता है
कि प्रेम और क्रांति
एक ही हैं!
हंसते हैं,
यह सुन कर
कि मुहब्बत की आमद
आपकी ज़िन्दगी में,
ऐसी ही होती है,
ऐसी ही होनी चाहिए,
कि जैसे कोई बड़ा बवन्डर,
कोई तूफ़ान,
कोई सुनामी!
क्यूंकि अगर जस का तस ही रहा सब,
ठस!
कि जैसा पहले था ..
अगर ख़ुद को खोया ही नहीं,
किसी को पा लेने में,
तो प्रेम किया ही कहाँ!

वे हंसते हैं,
क्यूंकि नहीं जानते,
लहू की उसी स्याही से
लिखी जाती है
तहरीर इन्क़लाब की,
जिससे लिखते हैं आशिक़
इश्क़नामे, वफ़ानामे!
लिहाज़ा
झूठी और भद्दी है
उनकी मासूमियत,
और हंसी उनकी
सनद है इस बात की
कि खोखली और पुर-फ़रेब है
उनकी बग़ावत!
कि वे नहीं जानते
एक ही क़लम से
लिखे जाते हैं
प्रेम और क्रांति!

तो मेरे नौनिहाल,
आओ,
कि आज की रात,
न सुनाकर
कहानी परियों की,
लोरी चाँद सितारों की,
मैं फूंक दूं
किसी मंत्र से,
तुम्हारे नन्हे कानों में
सुर बग़ावत के,
गीत इंक़लाब के!

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