इस दौर की हक़ीक़त
मुख़्तसर यह है
कि इस दौर में
सबसे बड़ा गुनाह है भूख!
ग़रीब का शोषण के ख़िलाफ़ बोलना
गुनाह है,
बेरोज़गार का
रोज़गार मांगना
गुनाह है!
संगीन अपराध है
आदिवासी का
अपने जल, जंगल, ज़मीन के लिये
उठ खड़ा होना!
समझदारी का वाहिद पैमाना है
ख़ामोशी,
वफ़ादारी का पैमाना
दलाली पूंजिपतियों की,
सत्ताधारियों की!
इक होड़ हो जैसे
कि किस से बेहतर कौन
बेच सकता है
सरे-बाज़ार ख़ुद को!
सच बोलने की सज़ा है
जेल या फांसी!
ख़िलाफ़ बोलने की क़ीमत मौत!
मगर सबसे बड़ा,
संगीनतर अपराध,
सबसे ख़तरनाक जुर्म
इस दौर में भी
भूख है,
भूख और ग़रीबी!
मुख़्तसर यह है
कि इस दौर में
सबसे बड़ा गुनाह है भूख!
ग़रीब का शोषण के ख़िलाफ़ बोलना
गुनाह है,
बेरोज़गार का
रोज़गार मांगना
गुनाह है!
संगीन अपराध है
आदिवासी का
अपने जल, जंगल, ज़मीन के लिये
उठ खड़ा होना!
समझदारी का वाहिद पैमाना है
ख़ामोशी,
वफ़ादारी का पैमाना
दलाली पूंजिपतियों की,
सत्ताधारियों की!
इक होड़ हो जैसे
कि किस से बेहतर कौन
बेच सकता है
सरे-बाज़ार ख़ुद को!
सच बोलने की सज़ा है
जेल या फांसी!
ख़िलाफ़ बोलने की क़ीमत मौत!
मगर सबसे बड़ा,
संगीनतर अपराध,
सबसे ख़तरनाक जुर्म
इस दौर में भी
भूख है,
भूख और ग़रीबी!
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