समस्तीपुर
अभी कल ही,
फिर किसी मस्जिद पर
भगवा झंडा फहरा कर
दो नौजवानों ने
ज़िंदा कर दी याद
1992 की,
जब प्रजातंत्र की छाती पर चढ़कर
फ़ासीवाद
झंडे गाढ़ रहा था.
मगर यह तस्वीर
किसी मस्जिद की नहीं,
न किसी धर्म की है,
यह तस्वीर है
हमारे दौर की
और भूख, बेरोज़गारी और शोषण की
काली स्याही में लिखे
उस भविष्य की,
जिसे हम अपने बच्चों के लिए
चुन रहे हैं.
फिर किसी मस्जिद पर
भगवा झंडा फहरा कर
दो नौजवानों ने
ज़िंदा कर दी याद
1992 की,
जब प्रजातंत्र की छाती पर चढ़कर
फ़ासीवाद
झंडे गाढ़ रहा था.
मगर यह तस्वीर
किसी मस्जिद की नहीं,
न किसी धर्म की है,
यह तस्वीर है
हमारे दौर की
और भूख, बेरोज़गारी और शोषण की
काली स्याही में लिखे
उस भविष्य की,
जिसे हम अपने बच्चों के लिए
चुन रहे हैं.
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13 पॉइंट
13 पॉइंट
आरक्षण पर यह हमला,
दर-अस्ल हमला है
उच्च-शिक्षा के
बदलते हुए वर्ग-चरित्र पर.
हमला है
यथा-स्थिति पर उठते
सवालों पर,
और सवाल करने की आज़ादी पर.
दलित, पिछड़े, आदिवासी,
मुस्लमान और औरतें
किसे नहीं भाते
कक्षाओं, कार्यस्थलों में,
वह कौन है
जिसकी कुर्सी के पाये
हिलने लगते हैं
'जय भीम' के नारों से,
जिसकी सत्ता छिनने लगती है,
'लाल सलाम' की गूँज से ..
दर-अस्ल हमला है
उच्च-शिक्षा के
बदलते हुए वर्ग-चरित्र पर.
हमला है
यथा-स्थिति पर उठते
सवालों पर,
और सवाल करने की आज़ादी पर.
दलित, पिछड़े, आदिवासी,
मुस्लमान और औरतें
किसे नहीं भाते
कक्षाओं, कार्यस्थलों में,
वह कौन है
जिसकी कुर्सी के पाये
हिलने लगते हैं
'जय भीम' के नारों से,
जिसकी सत्ता छिनने लगती है,
'लाल सलाम' की गूँज से ..
वे करते रहें हज़ार हमले,
सत्ता के तमाम हथियारों से,
हम महज़ जवाब में,
करते रहेंगे सवाल.
सत्ता के तमाम हथियारों से,
हम महज़ जवाब में,
करते रहेंगे सवाल.
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नर्मदा
निस्संदेह वे डरते हैं,
न डरते नदी से
तो क्यूँ बनाते बाँध
उसे रोकने को?
रोक कर उसे
वे कहते हैं,
तू स्थिर है, मूक है,
प्रवाह-विहीन है,
हमने तुझे रोक लिया,
हमें डर नहीं लगता तुझसे.
मगर कहते हुए यह,
वे करते हैं
स्वयं अपना उपहास,
क्यूंकि न डरते नदी से
तो क्यूँ बनाते बाँध!
न डरते नदी से
तो क्यूँ बनाते बाँध
उसे रोकने को?
रोक कर उसे
वे कहते हैं,
तू स्थिर है, मूक है,
प्रवाह-विहीन है,
हमने तुझे रोक लिया,
हमें डर नहीं लगता तुझसे.
मगर कहते हुए यह,
वे करते हैं
स्वयं अपना उपहास,
क्यूंकि न डरते नदी से
तो क्यूँ बनाते बाँध!
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गोरखपुर के बच्चों के नाम
तुम, नन्ही सी एक जान,
एक गवाही ज़िन्दगी की,
आस,
एक बेहतर कल की,
एक वादा
भरे पेट का,
किसी पसमांदा घर का चिराग़ ..
एक गवाही ज़िन्दगी की,
आस,
एक बेहतर कल की,
एक वादा
भरे पेट का,
किसी पसमांदा घर का चिराग़ ..
तुम बनते,
किसी घर की बड़ी बेटी,
किसी माँ का पहला बच्चा,
किसी बाप का सहारा,
भाई, किसी बहन का,
बहन, दोस्त, पडोसी, मज़दूर, मालिक,
मास्टर, मुलाज़िम, स्नातक, पत्रकार ..
तुम जो बनते,
शायद बाल मज़दूर,
और पिस जाते
जीवन के संघर्ष में अनायास
अबोध ..
या बनते
किसी परिवार की पहली पीढ़ी,
शिक्षा की वह पहली सीढ़ी ..
किसी परीक्षा का नतीजा,
किसी गांव की तरीक़ ..
किसी घर की बड़ी बेटी,
किसी माँ का पहला बच्चा,
किसी बाप का सहारा,
भाई, किसी बहन का,
बहन, दोस्त, पडोसी, मज़दूर, मालिक,
मास्टर, मुलाज़िम, स्नातक, पत्रकार ..
तुम जो बनते,
शायद बाल मज़दूर,
और पिस जाते
जीवन के संघर्ष में अनायास
अबोध ..
या बनते
किसी परिवार की पहली पीढ़ी,
शिक्षा की वह पहली सीढ़ी ..
किसी परीक्षा का नतीजा,
किसी गांव की तरीक़ ..
तुम जिससे जीने का हक़ छीन लिया गया,
तुम, जिससे मर मिटने का हक़ छीन लिया गया,
तुम जो बन गए ज़ुल्म की शहादत ..
गोरखपुर के नौनिहालों,
यौम-ए-आज़ादी
तुम बन गए हो
आज़ादी के वजूद पर लगा
एक सवालिया निशान!
तुम, जिससे मर मिटने का हक़ छीन लिया गया,
तुम जो बन गए ज़ुल्म की शहादत ..
गोरखपुर के नौनिहालों,
यौम-ए-आज़ादी
तुम बन गए हो
आज़ादी के वजूद पर लगा
एक सवालिया निशान!
- सीमीं अख़्तर
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